नमस्कार साथियों, मेरे पिता एक बहुत बड़े पैमाने पे खेती करने वाले किसान थे. हमारे पास सैकड़ों बीघा जमीन थी और बहुत सारे खेत मजदुर भी. मेरी पढाई पूरी होने से पहले से ही मैं खेत में जाता था. मुझे भी कुछ सालो के बाद यही काम संभालना था क्यूंकि में अपने माँ बाप का इकलौता पुत्र हूँ. खेत में जा के मेरे पास ज्यादा काम तो होता नहीं था इसलिए में इधरउधर टहलता था और लडकियों को ताड़ता रहता था. यह लडकियां हमारे खेत पर मजदूरी करने आती थी और उनमे से कुछ कुछ तो बहुत ही सेक्सी फिगर वाली थी. फिगर तो सेक्सी होनी ही थी इनकी पूरा दिन खेत में मजदूरी करती थी जो बिचारी, इसलिए समझ लो के जिम हो जाता था. मैं अक्सर सुबह में तालाब के पीछे वाली झाडी में छिप जाता था. तालाब के इसी हिस्से में बहुत सारी लडकियां और आंटियां हगने के लिए आती थी. मैं उसकी चूत में से निकलते मूत को देखता था अपने लंड को जैसे की व्यायाम कराता था की देख इसी बुर में तुझे जाना हैं एक दिन. मुझे बुर में लंड देने के बहुत अरमान थे लेकिन साला कोलेज में कोई पटा ही नहीं. साथियों गाँव की लड़की की देसी चूत बहुत मजेदार होती है.
इन हसीनाओं में नेहा सब से हसीन थी. उसकी उम्र होगी कुछ 21-22 के करीब लेकिन उसने अपने शरीर में जैसे की आग भर के रखी थी. उसके मस्त आछे गुलाबी होंठ और सेक्सी फिगर देख के कोई ही होगा जो उसकी चूत में अपना लंड देने के लिए बेताब ना हो. मैंने नेहा की चूत में कितने दिनों से अपना डंडा डाल के हिलाने को बेताब था. शहर में मैं कितनी बार भी रंडियो के पास जाके आया था लेकिन मुझे पता था की एक लड़की को पता के उसकी चूत में लंड देने का मजा एक रंडी की चूत कभी भी नहीं दे सकती. मैं मनोमन नेहा को पटाने की योजना बनाने लगा. मैंने उसे देखना और उसे स्माइल देना चालू कर दिया. वो भी मेरे सामने हंसती थी और मेरे तरफ देखती थी लेकिन वो मुझ से दूर दूर रहती थी. शायद इसकी वजह उसकी माँ थी जो उसके साथ ही काम पे आती थी. मैंने सोचा की अगर इस लड़की की चूत में लंड देना हैं तो इसकी माँ को यहाँ से दूर करना ही पड़ेगा. मैंने मुनीम जी से बात की और नेहा की माँ गायत्री को भेंस के तबेले के गोबर उठाने का काम दे दिया. गायत्री तो बहुत खुश हुई क्यूंकि यह काम उसके खेत के काम से दस गुना आसान था, वोह मुझे धन्यवाद करते हुए काम के लिए भेंस के तबेले के तरफ चली गई. अब मेरी फेंटसी मेरी चूत मेरी रानी नेहा और मेरे बिच कोई काँटा नहीं था. अब मैं राह देख रहा था एक मौके की जिस दिन में इस गोरी की देसी चूत में अपना लंड धंसा सकूँ.
उसकी माँ के दूर जाते ही नेहा भी अब मुझ से नजदीक होने लगी थी. वो मेरे साथ बातें करती थी और मैंने मस्ती में एक दो बार उसके स्तन पर भी हाथ मार दिए थे. पहले तो वो रूठ के चली गई लेकिन फिर वो मुझे छूने देती थी. हाँ लेकिन अभी मुश्किल यह थी की चोदने का प्लान नहीं आकार ले रहा था. मैंने इसे चोदु लेकिन जगह की किल्लत पड़ी हुई थी. मआखिर कार मौका मिल ही गया, दिवाली की छुट्टियां आई और खेत के काम में 3 दिन की छुट्टी थी. नेहा के अलावा तो सभी लोग दुसरे गाँव के थे इसलिए छुट्टियों में वो लोग अपने गाँव गए. गायत्री को हमने भेंसो के काम के लिए रोके रखा था. पिताजी ने उसे डबल तनख्वाह की प्रोमिस की थी ताकि भेंसो की देखभाल हो सकें. मैंने एक दिन पिताजी से कहा की जुवार के खेत में कुछ काम हैं और एक मजदुर लगाना पड़ेगा. पिताजी बोले की दिवाली के बाद करवा लेना. मैंने कहा नहीं पिताजी उसमे बहुत घास निकल आई है बिच में. पिताजी बोले अभी तो कोई हैं भी नहीं करने के लिए. मैंने कहा गायत्री की बेटी हैं उसे मुनीम जी के द्वारा कहेलवा दें. वो काम भी अच्छा करती हैं. पिताजी बोले, तू ही बोल दे उसे. मैं गायत्री को बोल दूंगा, और हाँ उसे भी सामान्य वेतन से ज्यादा पैसे देना. मजबूर हैं बिचारे वरना मजदूरी किसको अच्छी लगती हैं. पिताजी को पता नहीं था की नेहा आज दस गुना लेके जाएगी अगर मेरा प्लान सफल रहा और मुझे उसकी सेक्सी चूत में लंड डालने का मौका मिल गया तो.
नेहा के साथ में खेत में गया और इधर उधर देखा की कोई नहीं हैं तो धीरे से उसके स्तन को दबा दिया. उसकी चोली के अंदर छिपे मस्त गोल मटोल और टेनिस के बोल जैसे चुंचे मेरे लौड़े को तभी खड़ा करने के लिए काफी थे. मेरा तोता खड़ा हो गया था. नेहा बोली, साहब कोई आ जाएगा. मैंने कहा कोई नहीं आएगा जानेमन, सभी सेट कर रखा हैं मैंने. नेहा के घाघरे को मैंने अपने हाथ से उठाया और उसे निचे घास के ऊपर लिटा दिया. मैंने उसके कपडे एक एक कर के उतार फेंके. नेहा मेरे तरफ देख रही थी और मैं उसके उभरे हुए सेक्सी स्तनों को. मैंने जैसे ही उसके स्तनों के ऊपर हाथ लगाया उसकी आह आह निकल पड़ी. मैंने भी अपने कपडे उतार फेंके और सीधा खड़ा लंड उसके मुहं में दे दिया. नेहा को पता था की उसे क्या करना हैं. वो मेरे लंड को चपचप चूसने लगी और मैंने उसके बालो में उँगलियाँ डाल के उसे अपने लंड के ऊपर जोर से दबाना चालू कर दिया. वो मेरा पूरा के पूरा लंड मुहं में ले लेती थी और फिर गोलों को भी दबा के मस्त सुख दे रही थी. मैंने नेहा के चुंचे एक बार और जोर जोर से दबाना चालू कर दिया. मेरा हाथ अब उसकी चूत के ऊपर घूम रहा था, क्यूंकि वो मेरा लंड चूस रही थी इसलिए मुझे उसकी चूत में हाथ देने में मुश्किल हो रही थी. मैंने उसकी चूत के होंठो पर हाथ फेर फेर उसका रस निकाल दिया. नेहा आहा आह आह कर रही थी और मैं उसे गले लगा के अपनी तरफ खींचने लगा. उसके मुहं पर मेरे लंड से निकला रस दिख रहा था.
नेहा को मैंने वही कुतिया बना दिया और पीछे से धीरे से उसकी भोसड़े में लंड पेल दिया. उसकी वर्जिन चूत के अंदर लंड अभी तो सुपाड़े जितना ही घुसा था की उसकी चीख निकल पड़ी. वो आह्ह्ह आह्ह्हह्ह आऊऊऊऊ ओई ओही उई उई उई…करती रही और मैंने धीरे से उसके चुंचो को पकड़ लिया. मैं उसे गर्म करने के लिए सुपाड़े को अंदर रख के चुंचे दबाने लगा. नेहा ने साँसे अब धीरे से लेना चालू किया, नहीं तो थोड़ी देर पहले तो उसकी साँसे फुल चुकी थी. मैंने एक झटका और दिया और आधा लंड चूत में दे दिया. उसकी साँसे फिर से हाई हुई लेकिन उसकी चीख या सिसकियाँ अभी आनंदमय थी. मैंने अब एक और झटके से लंड को पूरा अंदर कर दिया. नेहा की ज्युसी पूसी में लंड देते ही मेरे रोंक्टे खड़े हो गए थे. मैंने भी पहली बार इतनी जवान लड़की की चूत में लंड दिया था. नहीं तो अभी तक तो मेरे नसीब में आंटियों जैसे रंडी की चूते ही थी. नेहा हिलने लगी और मेरा लंड उसके भोसड़े में इधर उधर होने लगा. मैं उसे कमर से पकड़ के जोर जोर से लंड अंदर बहार करने लगा. नेहा की आह आह अओह अओह…अब वेलकम के सुर में थी जो कह रही थी के आओ मेरी चूत चोदो चूत में लंड दे दो मेरे.
नेहा की पांच मिनट के चुदाई के बाद मेरे लंड में अजब सा खिंचाव आने लगा, जैसे की सारा खून वहाँ दौड़ गया हो. मैंने दो जोर के झटके लगाये और तभी मेरे लंड ने लावा उगला. नेहा की चूत में ही लंड ने मलाई निकाल दी. नेहा ने भी तभी चूत को टाईट कर के सारा माल अपनी चूत की गहराई में भर लिया. मैं उसके ऊपर लेट गया और हम दोनों थक के खेत में नंगे ही सो गए. 10 मिनट आराम करने के बाद मैंने एक बार फिर से नेहा को गरम किया और उसकी बुर को एक बार अपने लंड से भर दिया. इस बार चुदाई अगली बार से लंबी चली. देखते हैं की अगली चुदाई का मौका कब मिलता है इस गाँव की देसी चूत से.