नमस्कार साथियों, बात कुछ 10 साल पुरानी हैं लेकिन जब भी मैं इस बात को दिमाग में ला के उसके बारे में सोचता हूँ, मेरा लंड खड़ा हुए बिना नहीं रहता. तब मेरी पोस्टिंग जुनागढ़ के जंगल में थी, फारेस्ट ऑफिसर बनने के बाद यह मेरा सातवां तबादला था और मैं 3 अलग अलग स्टेट में काम कर चूका था. लेकिन जूनागढ़ मेरे जहन में आज भी जिन्दा हैं क्यूंकि यहाँ मैंने एक जंगल में रहने वाली और मस्त बड़ी गांड वाली एक आदिवासी औरत को चोदा था. तब मैं शादीसुदा नहीं था और हाथ से ही सब काम होता था और कभी कभी मैं राजकोट जा के वहाँ रंडी से अपने लंड की तरस छिपाता था. मेरा क्वार्टर जंगल के बिच में था और राशन और दुसरी सामग्री के लिए मुझे ज़िप ले के बहार जाना पड़ता था. एक दिन शाम के कुछ 6 बजे थे लेकिन गर्मी के दिन होने की वजह से अँधेरा उतना था नहीं, मेरे साथी कर्मचारी सुरजीत ने मुझे कहाँ की दूध लाना हैं. मैंने ज़िप निकाली और दूध लेने निकल पड़ा.
मैं अपनी मस्ती में जा रहा था, पंछी अपने घोंसलों में लौट रहे थे, एकाद दो हिरन इधर उधर उछलते दिखे. मैंने गाड़ी को झील वाले रस्ते से लेते हुए मोड़ लिया. सामने का सिन देख मेरी ज़िप अपने आप स्लो हो गई. सामने झील के किनारे एक आदिवासी युवती नहा रही थी. वोह ऊपर के कपडे उतार चुकी थी और उसने अपनी बड़ी गांड और बुर के ऊपर एक सफ़ेद धोती जैसा कपडा लपेटा था. लेकिन वोह भी भीग गया था इसलिए उसकी बड़ी गांड साफ़ दिख रही थी. मैंने ज़िप आगे ली और कुछ सोच के गाड़ी को साइड में रोक लिया. मैं अपनी वोटर बेग ले के निचे उतरा, और पानी भरने के बहाने वहाँ जा के खड़ा हुआ. इस आदिवासी ने मेरी तरफ देखा, उसके बड़े बड़े चुंचो से पानी की धार टपकने लगी. उसने तुरंत धोती जैसे कपडे से अपने स्तन को ढंकने की नाकाम कोशिस की. मेरा लंड पेंट के अंदर उछलने लगा था. मैंने उसकी तरफ देखा और उसे टूटी फूटी गुजराती में पानी के लिए कहाँ. उसने मेरी बात समझी और वोह पानी से बहार आई, ताकि पानी थोडा बहे और मैं उसे पिने के लिए भर सकूँ. जब वोह खड़ी हुई मुझे उसकी सेक्सी बड़ी गांड देख के मन तो हो गया की उसे पकड़ के उसमे अपना लंड दे दूँ. मैंने पानी भरा और उसे फिर अपनी टूटी गुजराती में कहा, की उसका पति कहा हैं और वोह ऐसे जंगल में शाम के वक्त क्यूँ नहा रही हैं. मेरी टूटी भाषा ही वोह समझ पाई थी. उसने मुझे कहा की उसका पति शहर गया हैं, और उसे कोई कीड़े ने काटा हैं इसलिए वोह पीड़ा दबाने के लिए ठन्डे पानी से नहां रही हैं.
मैंने उसे कहाँ की कीड़ा कहाँ काटा हैं बता तो. उसने अपनी कमर दिखाई और मैंने देखा की वहाँ लाल सुजन सा हुआ था. मैं समझ गया की उसे कोई साधारण कीड़े ने ही काटा था. मेरा ध्यान कमर से फिर उसकी बड़ी गांड पर पड़ा. मैंने उसे कहाँ अगर उसे दवाई लगानी हो तो मेरी ज़िप में हैं और मैं उसे लगा दूंगा. वो बोली, नहीं साहब आप बड़े लोग हैं…..अफसर, हम आपसे कैसे दवाई लगवा सकते हैं (टूटी फूटी गुजराती से मुझे इतना तो पता चल ही रहा था). मैं हंसा और उसको कहा ककी कोई बात नहीं आ जाओ ज़िप में. मैंने उसे ज़िप के पीछे की सिट में बिठाया और आगे डेशबोर्ड से एक पेइन किलर क्रीम की ट्यूब ले आया. वो उलटी बैठी हुई थी और उसकी बड़ी गांड मेरे से कुछ इंच की ही दुरी पर थी. मैंने उसके धोती जैसे कपडे को कमर से हटाया और उसको ट्यूब निकाल के लगाने लगा. इस आदिवासी की चमड़ी बहुत मुलायम थी और दवाई लगाते वक्त सुझन की वजह से वोह हलके हलके कराह रही थी. मैंने उसकी कमर पर हाथ मलना चालू किया और बहार अँधेरा फेलने लगा था.
मैंने इस आदिवासी की कमर को कुछ 2-3 मिनिट तक मालिश दी और अब मुझ से रहा नहीं जा रहा था. मेरा हाथ यकायक इसकी बड़ी गांड के ऊपर गया और उसने मेरी तरफ देखा इसके पहले मैंने इसकी भीगी हुई गांड को सहला दिया था. वोह मेरे तरफ हलके गुस्से से देख रही थी….मैंने उसे कहा मैं तुझे एक बार चुदाई के 50 रूपये दूंगा. उसका गुस्सा अब हल्का हो के हवा में उड़ने लगा था. वोह बोली, लेकिन यहाँ कोई आ गया तो. मैंने कहा यहाँ इस वक्त कोई नहीं आता क्यूंकि पिछले महीने एक शेर को इस विस्तार में देखा गया था. उसने कुछ कहा नहीं और मैंने इस आदिवासी युवती को पिछली सिट के उपर उल्टा लिटा दिया. मेरी उत्तेजना का कारण बनी गांड को मैं मसलने लगा और धोती को हटा दी. उसके शरीर को ढंकने के लिए यह एक मात्र वस्त्र ही उपयोग हुआ था और इसे हटाते ही वोह सम्पूर्ण नग्न हो गई. आदिवासी लड़की की झांटे इतनी थी के अंदर कबूतर घोंसला बना ले. यहाँ कहा वेक्स और शेविंग करनी थी इसने. वैसे भी बुर बुर होती हैं, रानी की हो या कानी की. मैंने अपनी खाखी वर्दी वाली शर्ट और पेंट उतार दी. मेरा लौड़ा अंदर फनफना रहा था और चड्डी दूर करते ही उसे खुली हवा का अहेसास हुआ.
मेरा लंड बहार आते ही यह आदिवासी युवती ने उसे अपने कब्जे में ले लिया और हिलाने लगी. मेरा लंड 8 इंच से भी लम्बा हैं और इसकी लम्बाई से ही शायद यह बड़ी गांड वाली युवती उत्तेजित हो चली थी. मैंने उसके स्तन को मुहं में ले लिए उसके निपल काफी बड़े थे जैसे की मोटी आंटियों के होते हैं, लेकिन यह युवती मुश्किल से 25 की होगी. वह लैंड हिलाते हिलाते अपना मुहं निचे ले आई और लंड को चूसने लगी. मैंने भी ज़िप के सिट के निचे की खली जगा पर उसका बिठा दिया और वो लंड को बड़े मजे से चुस्ती रही. मैं भी उसे लंड पूरा मुहं के अंदर दे दे धक्के मारने लगा. इस युवती की चुंचे मेरे जांघ पर अड़ रहे थे और मैं एक असीम सुख की कगार पर था. मेरा लंड पूरा खड़ा हो चूका था और उसका रंग भी जैसे की बदल गया था. मुझे अब बुर चाहिए थी इसकी और मुझे चोदते चोदते इसकी बड़ी गांड पर हाथ फेरने थे.मैंने अपना लंड उसके मुहं से बहार निकाला और उसे हाथ पकड़ के ज़िप में उठाया.यह युवती भी समझ गई की मुझे क्या चाहियें. वोह मेरी गोद मैं मेरे लंड के ऊपर बैठ गई. मेरा वीर्य निचोड़ गया.
मेरा खड़ा लंड आदिवासी बुर के अंदर तुरंत घुस गया और वोह मेरे लंड के उपर उछलने लगी. वो जोर जोर से उछल रही थी जिस से मेरा लंड उसकी बुर के अंदर पूरा घुस के बहार आ रहा था. मैंने उसे गांड से पकड़ा हुआ था और मैंने उसका सर बचाते हुए उसको अपने लौड़े के उपर उछाल रहा था. उसकी बड़ी गांड मस्त मुलायम थी और मैंने उसके कुलो को पकडे उसे कुछ देर तक चोदता रहा. कुछ 10 मिनिट तक वोह मुझ से उछल उछल के चुदवाती रही और मैंने भी उसे बुर एक अंदर तक लंड दिए हुए ठोकता रहा. उसकी साँसे मेरी तरह ही फुल गई थी. मैं उसे गांड पकड़ कर और जोर से ठोकने लगा. मैंने उसे अब निचे सिट के उपर लिटा दिया. उसकी बड़ी गांड मेरी तरफ थी और मैंने उसे पीछे से बुर के अंदर लंड दे दिया. मैं इसी पोजीशन में उसे कुछ देर और चोदता रहा और फिर मेरे लंड ने जवाब दे दिया. मेरा वीर्य इस बड़ी गांड के उपर ही गिर गया जिसे इस आदिवासी युवती ने अपने सफ़ेद कपडे से साफ किया, मेरा लंड भी उसने इसी कपडे से साफ़ कर दिया. मेरा इस युवती से चुदाई का सिलसिला इस दिन से चालू हुआ और जब तक मेरी पोस्टिंग जुनागढ़ में थी तब तक चलता रहा, कभी कभी उसका पति बहार हो तो वो रात भी हमारे क्वार्टर में बिताती थी, मेरे और मेरे दोस्त सुरजीत के लिए यह चुदाई का मस्त सामान बन गई थी.