हैलो नमस्कार साथियों, मैं कविका हूँ, मैं गाज़ियाबाद की रहने वाली हूँ। अभी नई-नई अल्हड़ जवानी में पकी हुई सरसों की बालियों जैसी लहलहा रही हूँ। हमारे वक्ष के उभर 34 इंच के हैं और शक्ल आलिया भट्ट जैसी है। जो भी मुझे एक बार देख ले बस समझिए कि उसका सिग्नल अप हो जाता है। हमारे गद्देदार चूतर अलग से दिखाई देते है.
हमारी सील टूट चुकी है जो कि हमारी खुद की चुदास ने हमारे अपने बॉय-फ्रेंड से तुड़वा दी थी। उसी की यह कहानी लिख रही हूँ, अच्छी लगे या बुरी, मुझे जरूर मेल करना।
तीन साल पहले की बात है, मैं 12वीं में पढ़ती थी, बोर्ड के एग्जाम थे सो कोचिंग जाती थी। कोचिंग में ही हमारे बगल की सीट पर एक गबरू जवान लड़का प्रदीप से हमारी आँख लड़ गई। शुरुआत तो उसने नहीं की थी, पर ‘चुल्ल’ तो हमारी जवानी में थी, सो खुद ही उस को झुक-झुक कर अपनी घाटियाँ दिखाने लगी।
लौंडा जवान था साला.. कब तक नहीं फिसलता।
हमारी गोरी-गोरी मुसम्मियाँ देख कर हरामी का लौड़ा फुफकारने लगता होगा। मुझे इस बात की जानकारी थी कि जब मैं झुक कर उसे अपने मम्मे दिखाती हूँ तो वो मुझे बड़ी प्यासी नजरों से देखता था।
मैं भी अन्दर ही अन्दर सोचती थी कि मसक दे हमारे मम्मे हरामी..पर साला फट्टू था।
वो बस होंठों पर जुबान फेर कर रह जाता था, बड़ी हद हुई तो लौड़ा सहला देता था।
मैं मन ही मन कुढ़ती थी कि कहीं मैं साले नामर्द पर दांव तो नहीं लगा रही हूँ..!
फिर एक दिन मैंने अपना मन पक्का कर लिया था कि आज इस चूतिया से कुछ बात करूँगी।
रोज की तरह कोचिंग में हमारे बगल में आकर बैठ गया, कुछ देर बाद मैंने अपना पेन नीचे गिरा दिया और झुक कर उठाने के लिए उसकी तरफ देखा।
तो उसने कहा- इधर नीचे गिरा है.. उठा ले..!
मैंने तनिक मुस्कुरा कर कहा- मतलब तुझे मालूम ही कि मैं ही झुक कर उठाऊँगी.. तू नहीं उठाएगा बल्कि देखेगा..!
बोला- क्या देखूँगा…?
मैंने भी ठोक कर कह दिया- जैसे तू तो सूरदास की औलाद है कुछ देखता ही नहीं है..!
बोला- तू क्या देखने दिखाने की बात कर रही है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा … खुल कर बोल न ..!
मैंने कहा- तुझे संतरे अच्छे लगते हैं?
“हाँ ..मेरा तो सबसे पसन्दीदा फल है ..!”
“तुझे संतरे देखना अच्छा लगता है..!”
“देखने से क्या होता मैं तो संतरा का रस पीता हूँ..!”
अब बात कुछ दोअर्थी होने लगी थी, जिसे मैं भी समझ रही थी और प्रदीप भी समझ रहा था।
मैं अपना पेन उठाने उसकी तरफ को झुकी और उसने भी डेस्क के नीचे अपने हाथ ले जाकर हमारे मम्मों को मसक दिया। हमारे मुँह से हल्की सी सिसकारी निकल गई ‘उई’.. उसने जल्दी से हाथ हटा लिया। मैंने पेन उठाया और ऊपर को उठते हुए उसके लौड़े को मसल दिया।
वो हमारी हरकत को देख रहा था, उसे एक बार तो विश्वास ही नहीं हुआ कि मैंने उसका लौड़ा दबाया है।
मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दी, उसने भी मुझे आँख मार दी।
बस उसी समय से मुझे वो वाला गाना बहुत पसंद हो गया-
“एक आँख मारूँ तो, परदा हट जाए,
दूजी आँख मारूँ कलेजा कट जाए..!
दोनों आँखें मारूँ तो ..
छोरी पट जाए.. छोरी पट जाए…
खैर साहब लौंडा पट गया था, अब मुझे अपनी ‘कंटो’ की खुजली का इलाज कराना था।
कोचिंग खत्म हुई प्रदीप और मैं बाहर निकले, प्रदीप ने मुझसे कहा- चल कॉफ़ी पीने चलते हैं।
मैंने कहा- आज नहीं कल चलेंगे .. आज जल्दी जाना है, कल तू जल्दी आ जाना। मैं घर पर कह कर आऊँगी कि मुझे एक सहेली के घर नोट्स लेने जाना है।
“ठीक है हनी .. बाय..!”
हय… उसके मुँह से ‘हनी’ सुना तो कलेजे में ठंडक पड़ गई। जीवन में पहली बार किसी लड़के ने प्यार से ‘हनी’ बोला था।
घर जाकर बिस्तर पर औंधी हो कर लेट गई.. दिल सातवें आसमान पर था। मानो जगत की सारी खुशियाँ मिल गई हों।
मैं हवा में उड़ने लगी थी।
अब बस प्रदीप ही प्रदीप दिख रहा था। बार-बार मेरा हाथ हमारी चूचियों पर जाता था।
उसके हाथों ने हमारी चूचियों को मसका था, बस बार-बार उसी स्पर्श को याद कर रही थी।
तभी प्रदीप का मैसेज आया, “आई लव यू”.. दिल बाग़-बाग हो गया। मैंने भी तुरन्त जबाब दे दिया, “आई लव यू टू”।
अब हमारे प्यार की कहानी आगे बढ़ने लगी रोज ही आँखों में मस्ती होती थी। मैं अपने सजने-संवरने पर विशेष ध्यान देने लगी थी। अपने मम्मों को उठा कर चलने लगी थी और प्रदीप को मम्मों की झलक आराम से मिले ऐसी कोशिश करने लगी थी।
एक दिन प्रदीप ने मुझे मैसेज भेजा, “अब रहा नहीं जाता है मुझे सब कुछ करना है..!”
मैंने भी जबाब दे दिया, “रोका किसने है…!”
उसका फिर से मैसेज आया, “किधर मिलें..?”
मैंने लिखा, “मुझे नहीं मालूम..!”
उसने कहा- बाहर चलेगी..!
मैंने कहा- सोच कर बताऊँगी..!
अब बस दिल में बेचैनी थी कि कैसे मिलें और अपनी आग बुझाएं।
जल्द ही मौका मिल गया मुझे एक टेस्ट देने के लिए दिल्ली जाना पड़ा।
मैंने घर में बताया तो मम्मी ने कहा- ठीक है चली जा वहाँ तेरे मामा रहते हैं उनके घर पर रुक जाना।
मैंने कहा- ठीक है।
अब मैंने प्रदीप को बताया तो उसने एक दिन पहले दिल्ली पहुँच कर एक होटल में सब बुकिंग वगैरह कर ली। मैं अपने एक परिचित के साथ दिल्ली तक गई और मामा जी के घर पर रुक गई।
एक घंटे बाद को मैंने प्रदीप को बताया और उसको मुझे ले जाने को कहा तो वो नजदीक के बस स्टॉप पर खड़ा हो गया।
मैं मामी से कह कर सेंटर देखने निकल गई।
दूसरे दिन पेपर था, मैं मामी से कह कर गई थी कि मुझे समय लग सकता है आप परेशान मत होना।
बस स्टॉप पर प्रदीप मिला और हम लोग होटल पहुँच गए।
होटल में जैसे ही हम रूम में गए तो दोनों ही बेसब्र थे। प्रदीप ने मुझे बाँहों में ले लिया और मैं भी उसके आगोश में लता सी लिपट गई।
ऐसा लग रहा था कि न जाने कब से बिछुड़े हों।
उसने हमारे होंठों को अपने होंठों से सटा लिया और हम दोनों ही एक-दूसरे को जी भर कर चूमने और चूसने लगे।
उसने अपनी जीभ हमारे मुँह में डाल दी। मैं उसकी जीभ को जबरदस्त तरीके से चूस रही थी। इसी गुत्थमगुत्था में कब हमारे कपड़े हमसे अलग हो गए, पता ही नहीं चला।
प्रदीप ने मुझे पूरा नंगा कर दिया था और खुद भी नंगा हो चुका था।
उसने मुझे अपनी गोद में उठाया और बिस्तर पर ले गया। हमारी आँखों में सिर्फ चुदाई का नशा था। दुनिया जहान की तो जैसे कुछ याद ही नहीं थी।
प्रदीप हमारे मम्मों को चूसने लगा। हमारी चूत में चींटियाँ सी रेंगने लगीं। मैंने भी उसका 6” का लौड़ा पकड़ लिया।
प्रदीप का लौड़ा एकदम कड़क था। मैंने जैसा ब्लू-फिल्मों में देखा था कि कुछेक लौड़े बिल्कुल केले की तरह गोलाई लिए होते थे बिल्कुल वैसा ही लौड़ा हमारी चूत की सील तोड़ने के लिए लहरा रहा था।
उसके लौड़े की एक और ख़ास बात थी कि वो गोरा था।
अब प्रदीप और मुझे बहुत चुदास चढ़ चुकी थी, सो वो हमारे ऊपर आ गया और उसने हमारी दोनों टाँगों को फैला दिया और हमारी चिकनी चूत में एक ऊँगली डाली। पानी से लिसलिसी चूत देख कर प्रदीप ने झट से अपने लौड़े का सुपारा हमारी चूत की दरार पर रख दिया।
इस समय मुझे वे सभी बातें बकवास लग रही थीं कि जब पहली बार लौड़ा घुसता है, तो बहुत दर्द होता है बल्कि मुझे तो ऐसा लग रहा था कि कब हमारी चूत में यह किल्ला घुसे, पर मैं कितनी गलत थी। प्रदीप ने सुपारा हमारी दरार में जैसे ही फंसाया, हमारी आँखें फट गईं … बहुत जोर से पीड़ा हुई। चुदाई का सारा ज्वार झाग सा बैठ गया। यूं समझिए कि प्रदीप ने सुपारा फंसाने के साथ ही एक जोर का शॉट मार दिया और उसका लण्ड हमारी चूत को फाड़ता हुआ अन्दर प्रविष्ट हो गया। मेरा लंड बार बार झांटों को चीर के उसकी बुर को भेदने लगा.
चूत के पानी की चिकनाई ने लौड़े को एकदम से अन्दर खींच लिया और हमारी चूत ने अपनी झिल्ली तुड़वा ली।
बहुत दर्द हो रहा था पर प्रदीप पर तो जैसे चुदाई का भूत सवार था, उसने मुझ पर जरा भी रहम नहीं किया और ताबड़तोड़ दो-तीन धक्के लगा कर पूरा मूसल अन्दर पेल दिया। मैं दर्द से छटपटा रही थी।
मैंने प्रदीप से कराहते हुए कहा- जानू मैं मर जाऊँगी तुम बाहर निकाल लो प्लीज़ …!
प्रदीप अब कुछ शान्त हुआ और उसने रुक कर मुझे पुचकारना आरम्भ कर दिया।
लगभग 5-6 मिनट के बाद ही मेरा दर्द कुछ कम होने लगा और फिर प्रदीप ने मुझे धीरे-धीरे चोदना चालू किया। कुछ और धक्कों तक मुझे दर्द हुआ फिर मुझे कुछ सनसनी सी होने लगी और दर्द अब आनन्द में बदल गया। तब भी मैं कुछ अधिक नहीं कर पा रही थी, लेकिन दर्द नहीं हो रहा था। प्रदीप मुझे लगातार रौंद रहा था।
फिर उसने हमारी आँखों में झाँका और झड़ने का इशारा किया, मैं मूक थी मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहूँ और प्रदीप ने अपना लावा हमारी चूत में ही छोड़ दिया।
उसके गरम पानी ने हमारी चूत की जैसे सिकाई कर दी, उसका वो लावा जबरदस्त आराम दे रहा था।
कुछ मिनट तक हम दोनों यूँ ही लिपटे पड़े रहे फिर प्रदीप उठा उसने अपने लौड़े को बाहर निकाला तो खून की एक लकीर सी दिखाई दी। मुझे मालूम था कि हमारी सील टूट चुकी है। मैंने अपना सर्वस्व प्रदीप पर न्यौछावर कर दिया था।
मैं प्रदीप के साथ होटल की वो दास्तान बार-बार दोहराती रही और इस बात को आज 3 साल हो चुके हैं। प्रदीप दिल्ली जा चुका है और मैं उसकी याद में बैठी हूँ कि वो कब आएगा और मुझे अपनी दुल्हनिया बनाएगा..! एक बार उसने जोश में आकर 7 इंच लंड भोसड़ी के बजाय गांड में धंसा दिया.
हमारी प्यार की इस सच्ची कहानी को आपके सामने रखी है और आप सब की दुआएं चाहती हूँ कि मेरा प्यार जल्द मुझे वापिस मिल जाए। वह समय आज भी मुझे बखूबी याद है.